भारत ने चीन को खुश कर दिया है जब वह रूस से अपने आयातित क्रूड ऑयल के लिए पेमेंट को युआन में करने का फैसला किया। ग्लोबल टाइम्स के मुताबिक, यह भारत के लिए एक बड़ा कदम है, जिससे युआन का इंटरनेशनल लेवल पर इस्तेमाल बढ़ेगा। इस से न केवल भारत के अर्थतंत्र में सुधार होगा, बल्कि यह चीन और भारत के बीच डी-डॉलरीकरण को भी कम कर सकता है।

पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों के कारण रूस और भारत दोनों को ही पेमेंट के लिए डॉलर का विकल्प खोजना था, लेकिन रूस के दबाव के चलते भारत ने युआन को अपने आयातित क्रूड के लिए माध्यम बना लिया है। यह नहीं सिर्फ भारत को स्वतंत्रता देगा, बल्कि दुनिया के बाजारों में युआन की हिस्सेदारी भी बढ़ा सकता है।

चीनी विशेषज्ञों के मुताबिक, भारत के इस कदम से युआन का अंतर्राष्ट्रीय प्रभाव बढ़ेगा और विश्वव्यापी व्याप

ार के बाजारों में इसकी मान्यता बढ़ेगी। यह साथ ही ब्रिक्स देशों को भी युआन का उपयोग करने के लिए प्रेरित करेगा। यदि दक्षिण अफ्रीका में होने वाले शिखर सम्मेलन में एक आम मुद्रा की शुरुआत होती है, तो यह ब्रिक्स देशों के बीच अधिक मुद्रा संबंधित सहयोग की संभावनाओं को बढ़ा सकता है।

युआन की वैश्विक हिस्सेदारी की बढ़ोतरी को देखते हुए भारत ने अपने रूसी क्रूड ऑयल आयात को युआन में करने का निर्णय लिया है। इसका परिणामस्वरूप, भारत ने जून में रिकॉर्ड स्तर पर रूस से तेल का आयात किया है। रिपोर्ट के अनुसार, इस माह में प्रतिदिन करीब 22 लाख बैरल क्रूड ऑयल आयात किया गया है, जो सऊदी अरब और इराक के संयुक्त शिपमेंट से अधिक है।

युआन को वैश्विक रूप से स्वीकार करने की प्रवृत्ति दुनिया भर में बढ़ रही है और यह एक प्रमुख लघुरूपी राष्ट्र के रूप में चीन की मुद्रा को मजबूती देता है।

भारत द्वारा युआन में तेल आयात: चीन के मुद्रा पर बढ़ता प्रभाव

भारत और रूस के बीच संबंधों में एक महत्वपूर्ण परिवर्तन देखने को मिला है। भारत ने अपने रूसी क्रूड ऑयल आयात को युआन में करने का निर्णय लिया है, जिससे चीन की मुद्रा युआन को आगे बढ़ावा मिला है। यह एक प्रमुख घटक है जो चीन को खुशी के साथ उत्साहित कर रहा है। ग्लोबल टाइम्स ने इस उदाहरण की तारीफ की है और उनके विशेषज्ञों का कहना है कि यह भारत के डी-डॉलरीकरण प्रक्रिया में एक महत्वपूर्ण कदम है। इसके साथ ही, युआन की अंतर्राष्ट्रीय प्रभावशीलता में भी वृद्धि होगी और चीन को अधिक मुद्रा स्वीकार करने की क्षमता मिलेगी।

भारत और रूस के बीच तेल आयात का मामला अब युआन में हो रहा है। अब तक, भारत रूस से रुपये के बदले में क्रूड ऑयल ले रहा था। लेकिन रूस के दबाव के बाद, भारत की रिफाइनरियों ने चीनी मुद्रा युआन में तेल आयात करना शुर

दिया है। यह परिवर्तन भारत के तेल आयात में एक महत्वपूर्ण बदलाव है और इससे चीन के मुद्रा युआन के प्रति भारत की आकर्षण बढ़ी है।

चीनी विशेषज्ञों ने इस कदम की प्रशंसा की है और उनका कहना है कि भारत के युआन में तेल आयात से युआन के अंतर्राष्ट्रीयीकरण को बढ़ावा मिलेगा। यह उनके मुताबिक चीन की मुद्रा को वैश्विक स्तर पर और अधिक मान्यता देगा। इसके साथ ही, युआन की वैश्विक उपस्थिति बढ़ेगी और दुनिया के बाजारों में इसकी हिस्सेदारी महत्वपूर्ण रूप से बढ़ेगी।

इस बदलाव के पीछे एक और महत्वपूर्ण कारण है – डी-डॉलरीकरण की प्रक्रिया में एक महत्वपूर्ण कदम। डॉलर व्यापार और अधिकांश अंतरराष्ट्रीय लेनदेन के आधार पर होता है। इसलिए, भारत के युआन में तेल आयात की पहल डॉलर के बजाय चीनी मुद्रा युआन का उपयोग करना डॉलर के अंदाजे को कम करेगा।

युआन में तेल आयात: भारत और चीन के मुद्रा संबंध पर बढ़ता प्रभाव

चीन की मुद्रा युआन के अंतर्राष्ट्रीयीकरण के साथ-साथ भारत द्वारा युआन में तेल आयात करने का निर्णय चीन और भारत के मुद्रा संबंधों पर बढ़ता प्रभाव डाल रहा है। इस नए कदम से भारत चीन के द्विपक्षीय व्यापार में एक महत्वपूर्ण बदलाव ला सकता है। यहां कुछ महत्वपूर्ण प्रभाव दिए जा सकते हैं:

  1. चीनी मुद्रा युआन की मान्यता और विश्वसनीयता में वृद्धि: भारत द्वारा युआन में तेल आयात की पहल चीनी मुद्रा युआन की अंतर्राष्ट्रीयीकरण को बढ़ावा देगी। यह चीनी मुद्रा को वैश्विक स्तर पर और अधिक मान्यता प्रदान करेगी।
  2. युआन की अंतर्राष्ट्रीय प्रभावशीलता में वृद्धि: भारत द्वारा युआन में तेल आयात से युआन की अंतर्राष्ट्रीय प्रभावशीलता में वृद्धि होगी। इससे चीन को विदेशी मुद्रा स्वीकार करने की क्षमता मिलेगी और विश्व बाजारों में इसकी हिस्सेद
  3. भारत के मुद्रा संबंधों में बदलाव: युआन में तेल आयात का निर्णय भारत के मुद्रा संबंधों में भी एक महत्वपूर्ण बदलाव ला सकता है। इसके माध्यम से भारत डॉलरीकरण से दूर हटकर चीनी मुद्रा का उपयोग कर सकता है। इससे भारत की मुद्रा व्यापार में वृद्धि होगी और डॉलर के विपरीत चीनी युआन की मान्यता बढ़ेगी।
  4. द्विपक्षीय व्यापार में सुधार: युआन में तेल आयात के माध्यम से भारत और चीन के द्विपक्षीय व्यापार में सुधार हो सकता है। इससे व्यापारिक संबंधों में दर की स्थिरता और सुरक्षा आएगी।
  5. इस प्रकार, भारत द्वारा युआन में तेल आयात के निर्णय से चीन के मुद्रा पर बढ़ता प्रभाव होगा। यह बदलाव चीन को अधिक मुद्रा स्वीकार करने की क्षमता प्रदान करेगा

भारत द्वारा युआन में तेल आयात: भारतीय अर्थव्यवस्था और भूमिका

  1. भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए लाभ: युआन में तेल आयात का निर्णय भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए विभिन्न लाभ प्रदान कर सकता है।
  • मुद्रा संकट से बचाव: युआन में तेल आयात करके, भारत डॉलरीकरण से दूर हटकर अपनी मुद्रा को सुरक्षित कर सकता है। यह मुद्रा संकट से बचने और मुद्रा स्थिरता को बढ़ाने में मदद करेगा।
  • वित्तीय संप्रभुता: युआन में तेल आयात से भारत की वित्तीय संप्रभुता मजबूत होगी। यह भारत को अपनी वित्तीय प्रभावशीलता को सुदृढ़ करने में मदद करेगा और आर्थिक स्थिरता को बढ़ावा देगा।
  • बाजार वृद्धि: युआन में तेल आयात के नतीजे से भारतीय बाजारों में गतिशीलता आ सकती है। यह व्यापारिक संबंधों को मजबूत करेगा, नए व्यापार मौके प्रदान करेगा और आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करेगा।
  • भूमिका निभाने के साथ, युआन में तेल आयात चीन के साथ भारतीय द्विपक्षीय संबंधों को भी स्थायीत्व दे सकता है। निम्नलिखित कुछ महत्वपूर्ण भूमिकाएं हैं:
  • व्यापार में वृद्धि: युआन में तेल आयात के माध्यम से, भारत और चीन के बीच व्यापार में वृद्धि हो सकती है। यह दोनों देशों के बीच वित्तीय और ट्रेड संबंधों को मजबूत करेगा और उभरते बाजारों के लिए नए मौके प्रदान करेगा।
  • सामरिक सुरक्षा: युआन में तेल आयात चीन को भारत के साथ सामरिक सुरक्षा के क्षेत्र में संबंधों को मजबूत कर सकता है। दोनों देशों के बीच युद्धाभ्यास, संयुक्त नौसेना पाठशाला, और संयुक्त अभ्यास आदि के माध्यम से सामरिक सहयोग बढ़ा सकता है।
  • राजनीतिक मदद: युआन में तेल आयात चीन के साथ राजनीतिक संबंधों को भी सुदृढ़ कर सकता है। दोनों देशों के बीच विभिन्न मामलों पर सहयोग और समझौते करने का माध्यम बना सकता है।